नव संवत् के स्वागत में प्रकृति ने वंदनवार सजाये 

           चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा अर्थात् वर्ष प्रतिपदा, यह तिथि हिन्दू काल गणनानुसार नव वर्ष के प्रारम्भ का शुभ दिन है। 30 मार्च ‘सिद्धार्थ’ नामक विक्रम सम्वत् 2082 का प्रथम दिवस है। प्रत्येक वर्ष का एक नाम होना, विक्रम सम्वत् की अपनी विशेषता है। ‘पिंगल’ नामक सम्वत् की विदाई कर लोक ‘सिद्धार्थ’ नामक सम्वत् का स्वागत-अभिनंदन करेगा। हालांकि भारत वर्ष में विश्व के अन्य देशों की तरह मुख्य रूप से अंग्रेजी ग्रेगेरियन कलैंडर के अनुसार ही कार्यक्रम संपादित होते हैं पर आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्कारों के निर्वहन् का आधार विक्रमी संवत् ही है। वर्तमान में विश्व में प्रचलित काल मापन प्रणालियों यथा हिन्दू, चीनी, मिस्री, पारसी, तुर्की, यहूदी, रोमन, हिजरी में हिन्दू काल गणना प्रणाली सर्वाधिक प्राचीन, प्रामाणिक, श्रेष्ठ और वैज्ञानिक है। वर्ष प्रतिपदा कई ऐतिहासिक घटनाओं और संदर्भ को सहेजे हुए है। इसी दिन प्रातःकाल से ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना प्रारम्भ की थी। लंका विजय पश्चात अयोध्या में श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ था तो युधिष्ठिर ने भी राज्यारोहण कर अपने नाम का सम्वत् चलाया था। सिखों के द्वितीय गुरु अंगद देव तथा सिंधी समाज के संत झूलेलाल का प्राकट्योत्सव भी है। स्वामी दयानन्द ने आर्य समाज की स्थापना भी इसी तिथि को की थी। डॉ0 केशव बलिराम हेडगेवार ने इसी दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में की थी। शक्ति और भक्ति का प्रतीक पर्व नवरात्र भी प्रारम्भ होता है। ग्रिगेरियन कलैंडर में 57 जोड़ने पर विक्रम संवत् मिल जाता है। 

केवल हिन्दू काल प्रणाली में ही निमेष से लेकर (बल्कि उससे भी छोटी इकाईयों परमाणु, अणु, त्रसरेणु, त्रुटि, बोध, काष्ठा और लव आदि) युग, मनवन्तर और कल्प तक की गणना व्यवहार में है। किसी भी अनुष्ठान एवं सामान्य धार्मिक कर्म-काण्ड प्रारम्भ करने के पूर्व यजमान हाथ में जल, कुश, पुष्प, अक्षत आदि लेकर संकल्प करते हुए मंत्र पढ़ता है जिसमें युगाब्द, मन्वंतर, संवत्, तिथि, दिन, समय, मास आदि सहित ब्रह्माण्ड की आयु तक की गणना हमारी परम्परा में जीवनचर्या में सम्मिलित है और इस प्रकार हमने अनन्त काल-यात्रा को वर्तमान से जोडे़ रखा है। हिन्दू काल गणना सूर्य, चन्द्र व पृथ्वी की गतियों पर आधृत है। एक वर्ष को 2 अयन, 12 मास, 24 पक्ष, 52 सप्ताह, 27 नक्षत्रों में विभाजित किया गया है। सैकड़ों वर्षों बाद होने वाली आकाशीय घटनाओं, सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण, पूर्णमासी, अमावस्या, पर्व-त्योहार आदि की सटीक घोषणा हिन्दू पंचांग में ही सम्भव दिखायी देती है। पंचांग से ही कुम्भ मेला के स्नान-पर्व के समय, मुहूर्त आदि की जानकारी प्राप्त कर लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों में डुबकी लगाने, हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन, नासिक बिना किसी विज्ञापन एवं प्रचार के पहुँचते हैं। यह दृश्य भारतीय संस्कृति से अपरिचित विदेशियों को विस्मय में डाल देता है। ज्योतिषविद् लगध ने ग्रन्थ ‘ज्योतिष वेदांग’ में काल मापन की प्रणाली प्रथम बार प्रस्तुत करते हुए काल मापन के यंत्र भी बनाये। सम्राट विक्रमादित्य की राजसभा के नौरत्नों यथा धनवन्तरि, क्षपणक, अमर सिंह, शंकु (शंशकु), वेतालभटट, घटखर्पर, कालिदास, वराहमिहिर और वररुचि में से वराहमिहिर ने ‘पंच सिद्धान्तिका’ और ‘वृहत्संहिता’ जैसे विज्ञान ग्रन्थ विश्व को प्रदान किये। जिसमें ज्योतिष, भूूगर्भशास्त्र, पारिस्थितिकी, द्रवयांत्रिकी पर महत्वपूर्ण कार्य प्रस्तुत किया गया है। काल-ज्ञान हेतु उज्जयिनी भारत का केन्द्र बिन्दु है जैसे इंग्लैण्ड में ग्रीनविच है। जयपुर एवं दिल्ली की ‘जन्तर मन्तर’ वेधशालाएं आज भी सभी का ध्यान खींचती हैं। अन्य काल प्रणाली तुलनात्मक रूप से अवैज्ञानिक एवं अप्रमाणिक हैं। रोमन कलेण्डर में अभी 400 वर्ष पूर्व तक संशोधन होते रहे हैं। कभी रोमन कलेण्डर में 10 महीने होते थे, अगस्त और फरवरी महीनों में 30 दिन होते थे।

विश्व में हमें नव वर्ष के स्वागत के दो दृश्य दिखाई देते हैं जो सम्बंधित समाज की मानवीय दृष्टि, समग्र चिंतन और चेतना को प्रतिबिम्बित करते हैं। पहली जनवरी को दुनिया भर में नये वर्ष का आगाज बड़े-बड़े आयोजन करके किया जाता है जिसमें पटाखे फोड़ने से आकाश धुआं से भर जाता है। देर रात तक पार्टियों का दौर चलता है। शराब परोसी जाती है और अश्लीलता का नंगा प्रदर्शन होता है। प्रकृति भी ठंढ से सिकुड़ी सहमी बर्फ की चादर ओढ़े नीरवता समेटे निद्रा में रहती है। न कहीं कोई खिलखिलाती-महमहाती फूलों की बेलें दिखतीं न फसलों का जीवंत जीवन। न पक्षियों का मधुर कलरव सुनाई देता न ही भौंरों की गुंजार। न तितलियों के इंद्रधनुषी रंग दिखते न ही गिलहरियों, नेवलों की धमाचौकड़ी। पवन में न ऊर्जा, उमंग भरी सरसराहट और न ही मादक सुवास। हवा बहती है तो लगता है प्राणीमात्र को वेदना का शूल चुभाते देह की पोर-पोर में टीस उत्पन्न कर रही है। आम जन में न कुछ नया पाने का उत्साह न ही कुछ नये रचने-गढ़ने की ललक। वह तो स्वयं को गर्म कपड़ों में लपेटे गठरी बना बैठा रहता है। नदियों का जल बर्फ बन जल-जीवों के लिए संकट का कारण बनता है। खेतों में श्वेत चादर के नीचे बीज कराहता है। लेकिन हिन्दू नव वर्षागमन के पूर्व ही प्रकृति सुन्दरी मानो उसके स्वागत में सज-धज नवल रूप धारण कर लेती है। खेतों में अनेक फसलें अपने यौवन के अल्हड़पन में वासन्ती पवन के प्रेम में डूबी आनन्दमग्न-झूमती दिखाई पड़ती हैं। आंखों को सुख देता खेतों में दूर-दूर तक फैला सरसों का पीलापन है तो अलसी का नीलापन भी। मटर के दूध से सफेद फूल हैं तो मसूर की लालिमा भी। पलाश प्रीति के केसरिया रंग से धरा के भाल को सुशोभित कर रहा है तो सेमर खुश हो लाल सुमन उछाल रहा है। ताल-कूप का नीर दर्पण बन तरुणियों के विधु-वदन को स्वयं में सहेज खुश हो रहे हैं तो स्वच्छ सलिला सरिताएं प्राणियों को अमिय पान करने को न्यौता दे रही हैं। तोता, मैना, गौरैया, बसंता की मिठास भरी चहचहाहट है तो कोयल की मनहरण कूक भी। अरण्य में स्पन्दन है। लगता है जीवन सांसें ले रहा है और प्राणियों में आशा का संचार कर लोक सम्मुख ‘चरैवेति-चरैवेति’ के वैदिक संदेश की चिट्ठी बांच रहा है। कचनार, हरसिंगार, गुड़हल और गुलाब के विविध रंग बिखरे हैं तो आम की बौरें मन बौरा रही हैं। चने के होला की महक परिवेश में तैर रही है तो गन्ने के रस से बनाये जा रहे गुड़ की सोंधापन भी। शहनाई की स्वर लहरियां हैं तो मृदंग की कोमल थाप भी। पर न कहीं शोर है न हिंसा-अशान्ति, न कठोर-कलुष वचन हैं न पीड़ा-प्रताड़ना का रुदन। बस, चतुर्दिक सह-अस्तित्व, न्याय, करुण, दया, ममता, समता, सौहार्द, बंधुत्वभाव, सहयोग की भावना एवं स्वर हैं। तभी तो भोर से ही देवालयों में विश्व कल्याण की भावना से लोक देवार्चन और प्रार्थना कर रहा है। यज्ञ-हवन आदि हो रहे हैं और गोघृत, शर्करा, तिल, जौ, अक्षत, गुड़, गुरिज एवं औषधीय द्रव्यों की आहुति दी जा रही है। द्वार-द्वार पर मंगल वाद्य बज रहे हैं। जन सामान्य घरों में भगवा पताकाएं फहराते हैं और कलश स्थापित कर बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं। मलय बयार बहने से लोकजीवन में उल्लास-उमंग का प्रवाह है और मानवता के कल्याण का संकल्प भी। यह नव संवत लोक के लिए सुख, समृद्धि, शान्ति, सहकार, उत्कर्ष, उल्लास एवं अमित उत्साह का वाहक सिद्ध होगा तथा विश्व हिंसा, अराजकता, कलुष-कुभाव, व्यभिचार, नग्नता से मुक्त हो प्रकृति का पोषण कर मानवीय मूल्यों के संवर्धन हेतु बद्ध परिकर होगा, ऐसा विश्वास करते हुए सभी के प्रति शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं।

प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)

             

आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Translate »