कैंपस प्लेसमेंट में धांधलीः नैतिकता और छात्र हितों का हनन

देश के प्रमुख प्रौद्योगिकी संस्थानों-विशेषतः आइआइटीज द्वारा 20 से अधिक कंपनियों को कैंपस प्लेसमेंट प्रक्रिया से बाहर करना केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था में नैतिकता, पारदर्शिता और छात्र-हित संरक्षण को मजबूती प्रदान करने वाला साहसिक कदम है। इन कंपनियों ने छात्रों को ऑफर लेटर दिए, उनके परिवारों के भीतर आशा की किरण जगाई और अंतिम समय में बिना स्पष्ट कारण उन्हें रद्द कर दिया। यह केवल एक अनुबंध उल्लंघन नहीं, बल्कि छात्र के भविष्य, उसके मानसिक संसार और उसके सामाजिक विश्वास पर सीधा प्रहार है। आइआइटी, एनआइटी और शीर्ष विश्वविद्यालयों में प्रवेश पाना किसी विद्यार्थी की दीर्घकालिक मेहनत और प्रतिभा की पहचान है।

कैंपस प्लेसमेंट में धांधलीः नैतिकता और छात्र हितों का हनन

प्लेसमेंट और ऑफर लेटर केवल नौकरी नहीं, बल्कि परिवार के लिए भविष्य की सुरक्षा, सामाजिक प्रतिष्ठा और आत्मविश्वास का प्रतीक होते हैं। ऐसे में जब कंपनियां अचानक अपना वादा तोड़ देती हैं, तो विद्यार्थी केवल पेशेवर नुकसान नहीं झेलते, बल्कि मानसिक तनाव, अविश्वास और सामाजिक दबाव से भी गुजरते हैं। यह उनके मनोबल को कमजोर करता है और उनकी योग्यता के सम्मान को ठेस पहुंचाता है। इस तरह की स्थितियां बनना न केवल भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था पर एक चिन्ताजनक दाग है, बल्कि सरकार एवं कम्पनियों पर छात्रों के जीवन से खिलवाड़ करने का शर्मनाक द्योतक है।

निस्संदेह वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितता, मंदी, छंटनी और बाजार उतार-चढ़ाव से जूझ रही है। लेकिन इन चुनौतियों का भार छात्रों के कंधों पर डालना किसी मानवीय, पेशेवर या नैतिक दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। विश्वविद्यालय किसी प्रयोगशाला की तरह नहीं हैं जहां विद्यार्थियों को जोखिमपूर्ण स्थति में डालकर कंपनियां प्रयोग चलाती रहें। आइआइटीज का यह निर्णय स्पष्ट संदेश देता है कि छात्रों के भविष्य और सम्मान से खिलवाड़ सहन नहीं किया जाएगा तथा संस्थान उनके साथ खड़ा रहेगा। यह कदम उच्च शिक्षा की गरिमा और राष्ट्रीय प्रतिभा के सम्मान की पुनर्स्थापना है। यह अन्य विश्वविद्यालयों के लिए भी मार्गदर्शक हो सकता है, क्योंकि शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री देना नहीं बल्कि सुरक्षित और विश्वसनीय भविष्य प्रदान करना है। देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेना ही छात्रों के लिये एक बड़ी चुनौती होती है, छात्र  इन संस्थानों के भारीभरकम आर्थिक बजट को किसी तरह पूरा करते हैं, इसके बाद भी उनको नौकरी नहीं मिलती है तो यह उनके जीवन को अंधकारमय बना देने जैसा है।

देश के अधिकांश शिक्षण संस्थानों में प्लेसमेंट व्यवस्था उतनी सुदृढ़ और पारदर्शी नहीं है, जितनी आइआइटीज में। हजारों छात्र नौकरी व अवसर की आशा में बैठते हैं और कुछ कंपनियां इस स्थिति का दुरुपयोग कर “ऑफर रद्द करने” की प्रवृत्ति अपनाती हैं। अब आवश्यक है कि अन्य विश्वविद्यालय भी कड़ी और अनुशासित प्लेसमेंट नीति अपनाएं, कंपनियों के व्यवहार का रिकॉर्ड रखें और बार-बार गलती करने वालों को ब्लैकलिस्ट करें। यदि शीर्ष विश्वविद्यालय सामूहिक रूप से यह कदम उठाएं, तो कॉर्पाेरेट जगत पर नैतिक अनुशासन का दबाव स्वतः निर्मित होगा। यह विषय अब केवल विश्वविद्यालय का मसला नहीं बल्कि राष्ट्रीय चिंता बन चुका है। छात्रों की बेरोजगारी, अवसरों की अनिश्चितता और कंपनियों की बेहिसाब मनमानी देश की प्रतिभा को क्षति पहुंचा रही है। इसलिए सरकार और नियामक संस्थाओं की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है।

सरकार को चाहिए कि प्लेसमेंट अनुबंध और कंपनियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने वाले स्पष्ट दिशानिर्देश बनाए, कंपनियों के व्यवहार का राष्ट्रीय डाटा रिकॉर्ड विकसित करे, गलती करने वाली कंपनियों को सरकारी परियोजनाओं और प्रोत्साहनों से वंचित करे तथा आवश्यकता पड़ने पर कानूनी कार्रवाई भी सुनिश्चित करे। छात्रों के संरक्षण हेतु बैकअप प्लेसमेंट समर्थन, आर्थिक सहायता और अनुबंधिक सुरक्षा उपाय जैसी व्यवस्थाएं भी विकसित की जानी चाहिए, ताकि किसी छात्र का भविष्य कंपनी की मनमानी से प्रभावित न हो। आइआइटी जैसे संस्थानों में प्रवेश पाना ही किसी भी छात्र के लिए एक बड़ी उपलब्धि होती है। आइआइटी की प्लेसमेंट व्यवस्था पहले से ही काफी अनुशासित और नियमबद्ध है।

कंपनियों को भाग लेने से पहले कई शर्तों का पालन करना होता है। इसके बावजूद यदि कोई कंपनी अपने वादे से मुकरती है, तो उसे जवाबदेह ठहराया जाना आवश्यक है। क्योंकि छात्रों को जब ऐसे किसी प्रतिष्ठित कंपनी से ऑफर लेटर मिलता है, तो वह न केवल उनके कॅरियर, बल्कि पूरे परिवार के भविष्य की उम्मीद बन जाता है। यदि वही कंपनी अंतिम समय में बिना ठोस वजह के ऑफर रद्द कर दे, तो यह केवल पेशेवर अनुशासन की कमी नहीं, बल्कि छात्रों के साथ किया गया खुला विश्वासघात है। आज का कॉर्पाेरेट जगत तेजी से बदल रहा है, उसके मूल्य और मानक बिखर रहे हैं, भारत जब दुनिया की तीसरी अर्थ-व्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, तब ऐसी त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण स्थितियों का बनना चिन्ताजनक है। इससे भारत के उच्च शैक्षणिक संस्थानों की साख एवं प्रतिष्ठा भी दांव पर लगती है, इन्हीं स्थितियों के कारण छात्र विदेशों में उच्च शिक्षा के लिये अग्रसर होते हैं।

भारत ज्ञान और युवा शक्ति का देश है। उसके शीर्ष संस्थानों की वैश्विक प्रतिष्ठा तभी कायम रह सकती है जब प्लेसमेंट प्रक्रिया भरोसेमंद, सम्मानजनक और नैतिक होगी। कंपनियों को भी समझना होगा कि युवाओं के साथ अनुचित व्यवहार उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाता है और समाज के साथ उनके संबंध कमजोर करता है। आइआइटी का यह निर्णय उन कंपनियों के लिए चेतावनी तो है ही, लेकिन शिक्षा जगत और नीति निर्माताओं के लिए अवसर भी है-एक ऐसी प्रणाली विकसित करने का अवसर जहां छात्र का सम्मान एवं जीवन-सुरक्षा सर्वाेपरि हो। यदि संस्थान, सरकार और समाज मिलकर स्पष्ट, कठोर और नैतिक ढांचा बनाएं तो निश्चित ही युवा प्रतिभा सुरक्षित होगी और भारत की विश्वसनीयता भी सुदृढ़ होगी। छात्र केवल डिग्री प्राप्त करने वाले नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की नींव हैं। उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। इसलिए आइआइटी का यह निर्णय स्वागतयोग्य है, बल्कि इसे बदलाव की दिशा में एक निर्णायक पहल के रूप में देखा जाना चाहिए। यदि अन्य विश्वविद्यालय, सरकार और समाज भी इसी दिशा में आगे बढ़ें, तो निश्चित ही देश की प्रतिभा को वह सम्मान, सुरक्षा और अवसर मिलेगा जिसकी वह अधिकारी है।

उच्च शिक्षा संस्थानों में प्लेसमेंट के नाम पर कंपनियों द्वारा छात्रों के साथ की जाने वाली धांधली, छल-प्रपंच और वायदाखिलाफी आज एक गम्भीर चिंता का विषय है। अनेक बार छात्रों को आकर्षक वेतन, उज्ज्वल भविष्य और स्थायी नौकरी के सपने दिखाए जाते हैं, किंतु चयन प्रक्रिया के बाद उन्हें कम वेतन, अस्थायी अनुबंध, असंगत कार्यक्षेत्र या नियुक्ति टालने जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है। यह विश्वासघात केवल छात्र का नहीं, बल्कि संस्थान और शिक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता का नुकसान है। अतः भारत सरकार को एक स्पष्ट, कठोर और पारदर्शी नीति बनानी चाहिए, जिसमें प्लेसमेंट देने वाली कंपनियों की जवाबदेही सुनिश्चित हो, अनुबंधित शर्तों का पालन अनिवार्य हो तथा उल्लंघन पर दंडात्मक प्रावधान हों।

इससे छात्रों का भविष्य सुरक्षित होगा, शिक्षा-प्रणाली की गरिमा बचेगी और उद्योग जगत में विश्वसनीयता एवं नैतिकता की संस्कृति विकसित होगी। इस दृष्टि से आइआइटी प्रशासन का ताजा निर्णय कि ऐसी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया जाए, एक सख्त संदेश देता है कि छात्रों का सम्मान, कैरियर और भविष्य सर्वाेपरि है। आज आवश्यकता इस बात की है कि दुनियाभर में अपनी पहचान रखने वाले आइआइटी और एनआइटी जैसे संस्थान इस तरह की नीति अपनाएं। इससे कंपनियों पर नैतिक और व्यावसायिक अनुशासन बनाए रखने का दबाव बनेगा। साथ ही छात्रों का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा कि अन्याय होने पर संस्थान उनके साथ खड़ा होगा। इसके अलावा सरकार और उच्च शिक्षा नियामक संस्थाओं को भी इस दिशा में स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए। एक ऐसी केंद्रीय व्यवस्था विकसित की जा सकती है, जिसमें ऑफर लेटर रद्द करने जैसी घटनाओं का रिकॉर्ड रखा जाए और बार-बार ऐसा करने वाली कंपनियों को ब्लैकलिस्ट किया जाए। यह कदम न केवल छात्रों की रक्षा करेगा, बल्कि प्लेसमेंट प्रक्रिया में पारदर्शिता और विश्वसनीयता भी सुनिश्चित करेगा।

ललित गर्ग लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
ललित गर्ग
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
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