भारत की रक्षा एवं आंतरिक सुरक्षा क्षमताओं को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल के तहत रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय (आरआरयू) ने अनुसंधान, शिक्षा, प्रशिक्षण और प्रौद्योगिकी सहायता के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। यह समझौता 22 दिसंबर 2025 को नई दिल्ली स्थित साउथ ब्लॉक में रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह की गरिमामयी उपस्थिति में संपन्न हुआ।

समझौता ज्ञापन पर डीआरडीओ की ओर से विशिष्ट वैज्ञानिक एवं महानिदेशक (उत्पादन समन्वय एवं सेवा अंतःक्रिया) डॉ. चंद्रिका कौशिक तथा राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय की ओर से कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) बिमल एन. पटेल ने हस्ताक्षर किए। इस अवसर पर रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव और डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ. समीर वी. कामत की उपस्थिति ने इस पहल के महत्व को और भी रेखांकित किया।
यह एमओयू आत्मनिर्भर भारत की राष्ट्रीय परिकल्पना और अमृत काल के दौरान अपनाए गए समग्र राष्ट्रव्यापी दृष्टिकोण के अनुरूप है। इसका प्रमुख उद्देश्य रक्षा एवं आंतरिक सुरक्षा प्रौद्योगिकियों में भारत की आत्मनिर्भरता को मजबूत करना, राष्ट्रीय सुरक्षा तैयारियों को सशक्त बनाना और रणनीतिक स्वायत्तता को नई ऊंचाइयों तक ले जाना है। यह पहल इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भारत भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों का सामना स्वदेशी तकनीक, ज्ञान और संस्थागत सहयोग के माध्यम से करने के लिए प्रतिबद्ध है।
गृह मंत्रालय के अधीन कार्यरत राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय एक राष्ट्रीय महत्व का संस्थान है और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा रक्षा अध्ययन के लिए नोडल केंद्र के रूप में नामित है। आरआरयू आंतरिक सुरक्षा के क्षेत्र में अकादमिक अध्ययन, प्रशिक्षण और नीति निर्माण से जुड़ी विशेषज्ञता प्रदान करता है। दूसरी ओर, डीआरडीओ देश का प्रमुख रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन है, जो सशस्त्र बलों और सुरक्षा एजेंसियों की आवश्यकताओं के अनुरूप अत्याधुनिक स्वदेशी तकनीकों और प्रणाली स्तर की विशेषज्ञता विकसित करता रहा है।
इस समझौता ज्ञापन के अंतर्गत दोनों संस्थान संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं पर मिलकर कार्य करेंगे। इसके साथ ही पीएचडी कार्यक्रमों, शोध फैलोशिप और सुरक्षा बलों के लिए विशेष प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण कार्यक्रमों को भी प्रोत्साहित किया जाएगा। सहयोग के इन प्रयासों का उद्देश्य न केवल वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करना है, बल्कि भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों का पूर्वानुमान लगाकर उनके लिए समय रहते समाधान विकसित करना भी है।
एमओयू के तहत उभरती परिचालनगत चुनौतियों पर गहन अध्ययन, प्रौद्योगिकी अंतराल का विश्लेषण, भविष्य की आवश्यकताओं का आकलन तथा केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों और गृह मंत्रालय के अधीन अन्य एजेंसियों में तैनात डीआरडीओ द्वारा विकसित प्रणालियों के जीवन चक्र प्रबंधन से जुड़े पहलुओं का अध्ययन भी शामिल है। इससे नीतिगत निर्णयों, परिचालन दक्षता और तकनीकी उन्नयन को एक समग्र दृष्टिकोण से आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि डीआरडीओ और आरआरयू के बीच यह सहयोग भारत की रक्षा एवं आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को एक मजबूत बौद्धिक और तकनीकी आधार प्रदान करेगा। अनुसंधान और प्रशिक्षण के इस एकीकृत मॉडल से न केवल मानव संसाधन का सशक्तिकरण होगा, बल्कि स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकियों के विकास और उनके प्रभावी उपयोग को भी गति मिलेगी।