हाय रे होली…वाह रे टोली

-होली की व्यंग्य रस रंग-

इस साल की होली शनै शनै सिर पर आ पहुंची थी और हम घबराये कि अभी तक हमने होली के लिए किसी भी प्रकार का कोई कार्यक्रम फिक्स नहीं किया था! यही सोच रहे थे कि हमारी श्रीमतीजी आ गईं और कहने लगी – क्या सोच रहे हो यूं अकेले अकेले। तब हमने उन्हें बताया कि होली को अब सिर्फ इने-गिने दिन रह गये हैं और हमारी कोई तैयारी अभो तक नहीं हुई है। यह सुनकर वह हँसने लगी और कहने लगीं अरे तो इसमें इतनी चिंता करने की बात कहां से आ गईं। तैयारी क्या करनी है बस कुछ पकवान वगैरह खास बना लेगें और रंग गुलाल की व्यवस्था कर लेंगे ,यह तो एक दिन का काम है। अभी से चिंता का क्या कारण है। मैंने कहा अरे तुम नहीं समझोगी, हमारी एक मित्र मण्डली है जिसमें सभी मित्रगण अपनी पत्नियों सहित होली के दिन ‘होली मिलन’ कार्यक्रम रखते है। और ये मंडली सभी के घरों में बारी-बारी से होली मनाने के लिये पहुंचती है और होली की  हुड़दंग मस्ती करते हैं। 

 इस‌ मंडली में शामिल रहते हैं प्रफुल्ल उपाध्याय  अमीर पाप्पुला, अजय वैष्णव, संजय पाण्डेय, कृष्णाकर गुप्ता, अमित व्यास, संतोष और मो अली, सुभाष भाई। और मैं सोच रहा था कि यह होली मेरी शादी के बाद की पहली होली है तो क्यूँ न ऐसी होली का शमां बनाया जाय कि हमारे सभी मित्रों को हमारे यहां की होली हमेशा-हमेशा याद रह जाये। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि तुम भी तो इस वर्ष पहली बार होली में मेरे साथ मौजूद हो। 

मैंने धीरे से मजाकिये मूड़ में श्रीमती जी से कहा तो वह शरमाकर जल्दी से बोलने लगीं- ये तो और भी अच्छी बात है कि इस साल हमारे घर ऐसा प्रोग्राम हो कि सभी लोग हमारी तारीफ करने लग जांय, लेकिन ये जरूरी है कि सभी लोगों से हमारी पार्टी कार्यक्रम तगड़ी होनी चाहिए। तभी तो हमे अपने काम में पूरी सफलता मिलेगी। श्रीमती जी ने आगे बताया कि अभी उस दिन मैं जब बाजार गई थी तो श्रीमती उपाध्याय और श्रीमती पाप्पुला मिल गई थीं और वे लोग मेरी खिल्ली उड़ा रहे थे कि तुमने तो अपनी शादी के बाद एक भी पार्टी नहीं दिया है। मैंने भी उसी दिन ठान लिया था कि ऐसी पार्टी दूंगी कि वे लोग भी क्या याद रखेंगे। 

बस तो हम दोनों ने एक यादगार पार्टी आयोजन के लिये कमर कस कर तैयार हो गये। मैं आवश्यक तैयारियों के लिये मार्केट जाने का उपक्रम  करने लगा । श्रीमतीजी भी होली के दिन के लिये घर में आवश्यक तैयारियों में जुट गई थीं ।

आखिरकार होली का दिन आ ही पहुँचा और हमने भी मित्र मण्डली पर रोब जमाने के लिये तैयारियों में कोइ कोर कसर बाकी नहीं रखी थी। इस चक्कर में खर्चा भी अच्छा खासा हो गया था लेकिन मान प्रतिष्ठा के आगे इसकी कोई चिंता नहीं की गई थीं। खासतौर पर हमारी श्रीमती जी  तो तन-मन-धन से इस कार्य में समर्पित हो गई थी। हमारी श्रीमती जी को चिंता थी कि हमारे द्वारा दिए गए पार्टी में कोई कोर कसर बाकी न रह जाए। क्योंकि उनको मिसेज पॉपुला और मिसेज पांडे को अपनी शानदार पार्टी आयोजित कर दिखाना जो था। सो इसलिए भी वह शानदार जानदार पार्टी के आयोजन की तैयारी में जुट गई थीं।

यह देखकर हम तो अपने आप पर फक्र महसूस कर रहे थे कि “भगवान भाग्यवान को ही ऐसी पत्नी मिलती है।” हम यह सोचकर ही कुप्पा हुये जा रहे थे।ले देकर इंतजार की घड़ियां समाप्त तब हुई जब हमने देखा दूर से हमारी मण्डली (टोली) हुड़दंग करती चली आ रही थी। हम दोनों ने बाहर निकल कर टोली की अगवानी की व सस्नेह टोली (मण्डली) को अन्दर ले गये ।मण्डली जब विराजमान हो गई तो हमने श्रीमतीजी का मुंह ताका और वे समझ गईं, तुरन्त सभी तैयारी पूर्ण हो गई और स्वल्पाहार तथा मलाईदार भांग की शर्बत का दौर चल पड़ा था। 

मिसेस पापुला की नजर हमारे घर में खासकर जो हम दिखाना चाहते थे, उन सभी पर पड़ गई थी और वे कह ही उठीं-अरे वाह भाई साहब आपने तो कमाल ही कर दिया आपने तो कितनी नफासत से सजा रखा है अपने घर को। एक से एक मंहगी चीजें दिख रही हैं। कितनी अच्छी च्वाइस है भई आपकी ,मान गये । हम तो इतना सुनकर गद्गगद हो गये। लेकिन श्रीमतीजी की ओर जब हमारी तनी हुई गर्दन घूमी तो हम उनकी तरेरती आँख देखकर ही एकदम ठण्डे हो गये फिर मस्का लगाते हुये बोल उठे, भाभीजी ये तो सब हमारी इनका कमाल हैं बेचारी दिन रात खटती रहती हैं और जब हमने यह कहा तब हमारी श्रीमतीजी का गर्व से दमकता चेहरा देखने लायक था। 

इतना कहकर ही हमारी जान पर जान आई अन्यथा तो दिन में तारे ही नजर आ गये थे। फिर शुरु हुआ मंडली द्वारा रंग गुलाल मस्ती, हुड़दग का दौर और ये  मस्ती हद का दौर ऐसा चला कि ऐसा चला कि हाय उन नाशपिटों ने हमारे घर की नफासत और सजावट का सत्यानाश ही कर डाला हाय…। याद करते ही हमारा कलेजा कांप उठता है उस दिन हरेक ने अपनी खूब मनमानी की थी। लगता था वे जैसे पहले से ही खार खाये बैठे थे- श्रीमती पाण्डेय जी तो अपने साथ अपने बच्चों की ऐसी शैतान टोली लाई थीं कि क्या बताऊँ। इन लोगों हमारी रसोई का बेड़ा गर्क दिया। अपनी धमा चौकड़ी में बाकी घर का गुड़गोबर तो हमारी मित्र मंडली ने कर दिया था। सारे घर के समान सजावटी सामान करीने से रखे टेबल कुर्सियां चादर तकिए यह सब रंग और गुलाल से रंग दिये और टोली  द्वारा किए गए हुड़दंग में हमारा पूरा घर अस्तव्यस्त हो गया,सारे दीवार भी रंग-बिरंगे होली के रंगों से रंग दिए गए थे।

मण्डली ताण्डव के बाद उनके विदा होने के बाद तो हमारी और भी शामत आ गई जब साक्षात काली का अवतार लिये बेलन रुपी हथियार लिये हमारी श्रीमती ने हमारी गिन गिन कर हड्डियां तोड़ी थी। मुंह से बस आह निकल रही थी, मन ही मन कोसते हुए बरबस ही कराहते हुए मुंह से निकल पड़े ये शब्द…..हाय रे होली……वाह रे टोली……..? 

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”

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