रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने वैश्विक शांति स्थापना की उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में शामिल देशों से परामर्श, सहयोग, समन्वय और क्षमता निर्माण — 4सी (Consultation, Cooperation, Coordination & Capacity Building) — के सिद्धांतों को अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने यह बात नई दिल्ली के मानेकशॉ सेंटर में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सैन्य योगदानकर्ता देशों (United Nations Troop Contributing Countries – UNTCC) के शांति सेना प्रमुखों के प्रथम सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कही। यह सम्मेलन 14 से 16 अक्टूबर 2025 तक भारत द्वारा पहली बार आयोजित किया जा रहा है।

रक्षा मंत्री ने कहा कि शांति सैनिकों के सामने आज की दुनिया में चुनौतियाँ लगातार जटिल होती जा रही हैं — कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में तैनाती से लेकर आतंकवाद, विषम युद्ध, अस्थिर राजनीतिक स्थितियों और मानवीय संकटों तक। उन्होंने कहा कि इन परिस्थितियों में शांति अभियानों की सफलता सदस्य देशों के बीच ठोस सहयोग और संसाधनों के कुशल उपयोग पर निर्भर करती है। श्री सिंह ने विकसित देशों से आग्रह किया कि वे सैनिकों, पुलिस बल, आधुनिक प्रौद्योगिकी और विशेष क्षमताओं के रूप में अपने योगदान को बढ़ाएं ताकि संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों को अधिक सशक्त बनाया जा सके।
रक्षा मंत्री ने कहा, “सुरक्षित संचार, निगरानी प्रणाली और मानवरहित प्रणालियों जैसी तकनीकें शांति अभियानों को न केवल अधिक प्रभावी बल्कि अधिक सुरक्षित बना सकती हैं।” उन्होंने चेताया कि यदि संयुक्त राष्ट्र अपनी संरचनाओं में व्यापक सुधार नहीं करता, तो उसे ‘विश्वास संकट’ का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने एक “सुधारित बहुपक्षवाद” की आवश्यकता पर बल दिया — जो समकालीन वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करे, सभी हितधारकों को समान प्रतिनिधित्व दे, और मानव कल्याण को केंद्र में रखे।
श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत सदैव वैश्विक शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में सक्रिय रहा है। दशकों से लगभग 2.9 लाख भारतीय सैनिकों ने 50 से अधिक संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सेवा दी है। उन्होंने कहा, “कांगो और कोरिया से लेकर दक्षिण सूडान और लेबनान तक, हमारे सैनिकों और चिकित्सा कर्मियों ने हमेशा अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर कमजोरों की रक्षा और समाज के पुनर्निर्माण में योगदान दिया है।”
उन्होंने कहा कि भारत आत्मनिर्भरता के विजन के तहत कम लागत वाली स्वदेशी प्रौद्योगिकियाँ विकसित कर रहा है, जिनसे शांति अभियानों को मजबूती मिलेगी — जैसे थल गतिशीलता प्लेटफार्म, सुरक्षित संचार नेटवर्क, निगरानी प्रणालियाँ, मानव रहित हवाई वाहन और चिकित्सा सहायता प्रणालियाँ।

रक्षा मंत्री ने यह भी कहा कि भारत में स्थित संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना केंद्र ने अब तक 90 से अधिक देशों के प्रतिभागियों को प्रशिक्षण दिया है। यह केंद्र न केवल प्रशिक्षण प्रदान करता है बल्कि सहयोगी देशों के बीच पारस्परिक समझ को भी बढ़ावा देता है, जो शांति अभियानों की सफलता का मूल है।
उन्होंने विशेष रूप से शांति अभियानों में महिलाओं की भागीदारी को “सबसे प्रेरणादायक परिवर्तन” बताया। श्री सिंह ने कहा कि “महिला शांति सैनिकों की उपस्थिति न केवल अभियानों की प्रभावशीलता बढ़ाती है बल्कि स्थानीय समुदायों में विश्वास भी स्थापित करती है।” उन्होंने उल्लेख किया कि भारत की पहली महिला पुलिस इकाई, जो 2007 में लाइबेरिया में तैनात की गई थी, ने सशक्तिकरण का वैश्विक प्रतीक स्थापित किया। आज भारतीय महिला सैनिक दक्षिण सूडान, गोलन हाइट्स और लेबनान में सेवाएं दे रही हैं। वर्ष 2024 में भारतीय सेना की एक महिला शांति सैनिक को कांगो में अनुकरणीय सेवा के लिए संयुक्त राष्ट्र सैन्य लैंगिक अधिवक्ता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
श्री राजनाथ सिंह ने भारतीय चिकित्सा दलों के योगदान की भी सराहना की, जिन्होंने अफ्रीका के विभिन्न संयुक्त राष्ट्र अस्पतालों में हजारों नागरिकों और शांति सैनिकों का उपचार किया है। उन्होंने कहा कि “भारतीय शांति सैनिकों की सेवा मानवता की भावना और उत्कृष्ट परंपराओं का जीवंत उदाहरण है।”
उन्होंने यह भी कहा कि भारत की ‘विश्व गुरु’ बनने की आकांक्षा प्रभुत्व का दावा नहीं बल्कि सहयोगात्मक और समावेशी प्रगति का प्रतीक है। “भारत की अहिंसा और शांति की परंपरा संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में नई दिशा और गहराई जोड़ सकती है,” उन्होंने कहा।
रक्षा मंत्री ने चेताया कि वर्तमान में कुछ देश अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, जबकि कुछ अन्य अपने निजी नियम बनाकर प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। “भारत ऐसे समय में अंतरराष्ट्रीय नियम-आधारित व्यवस्था को सुदृढ़ बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है,” उन्होंने कहा।
कार्यक्रम में सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी, जनरल अनिल चौहान, वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह, संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों के अवर महासचिव जीन पियरे लैक्रोइक्स, और संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पार्वथानेनी हरीश सहित कई वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने अपने स्वागत भाषण में भारत के लंबे शांति योगदान की चर्चा करते हुए कहा कि “भारतीय सेना परिचालन उत्कृष्टता, तकनीकी नवाचार और क्षमता निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है।” उन्होंने शांति स्थापना में नवाचार, समावेशिता और अंतर-संचालन की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भर पहल वैश्विक साझेदारों के लिए एक प्रभावी समाधान प्रस्तुत करती है।
सम्मेलन में 32 देशों के वरिष्ठ सैन्य नेतृत्व ने भाग लिया, जिनमें अल्जीरिया, ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, ब्राज़ील, मिस्र, फ्रांस, इथियोपिया, इटली, केन्या, मलेशिया, नेपाल, नाइजीरिया, श्रीलंका, थाईलैंड, वियतनाम सहित कई देश शामिल थे। सम्मेलन में साझा क्षमता निर्माण के लिए रक्षा प्रदर्शनियां भी लगाई गईं।
यूएनटीसीसी सम्मेलन का उद्देश्य शांति अभियानों से जुड़ी परिचालन चुनौतियों, उभरते खतरों, तकनीकी नवाचारों, और प्रशिक्षण की भूमिका पर विचार-विमर्श करना है। यह सम्मेलन भारत की वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को सशक्त रूप से प्रतिबिंबित करता है — एक ऐसा विश्व जहाँ सबका कल्याण और सहयोग ही स्थायी शांति की कुंजी है।